जेम्स मैडिसन संयुक्त राज्य अमेरिका के चौथे राष्ट्रपति और "संविधान के जनक" के रूप में जाने जाते हैं। यहाँ उनका संक्षिप्त जीवन परिचय दिया गया है: * प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: * जेम्स मैडिसन का जन्म 16 मार्च, 1751 को वर्जीनिया में हुआ था। * उन्होंने प्रिंसटन कॉलेज (उस समय द कॉलेज ऑफ न्यू जर्सी के नाम से जाना जाता था) में शिक्षा प्राप्त की। * उन्होंने बहुत ही अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। * राजनीतिक करियर: * उन्होंने अमेरिकी क्रांति के दौरान वर्जीनिया की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई। * 1787 में, उन्होंने संवैधानिक सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने अमेरिकी संविधान का मसौदा तैयार करने में मदद की। * उन्होंने "द फेडरलिस्ट पेपर्स" के सह-लेखक के रूप में संविधान के अनुसमर्थन के लिए तर्क दिया। * उन्होंने बिल ऑफ राइट्स को बनाने में अहम भूमिका निभाई। * उन्होंने 1801 से 1809 तक थॉमस जेफरसन के अधीन राज्य सचिव के रूप में कार्य किया। * 1809 से 1817 ...
1848 कम्युनिस्ट घोषणापत्र
* कम्युनिस्ट घोषणापत्र:- एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो 1848 में कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा लिखा गया था। यह दस्तावेज कम्युनिस्ट विचारधारा के मूल सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है और समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य की विवेचना करता है।
* इस घोषणापत्र में चार मुख्य भाग हैं:-
1. बुर्जुआ और सर्वहारा: इसमें बुर्जुआ और सर्वहारा वर्गों के बीच के संघर्ष की विवेचना की गई है।
2. सर्वहारा और कम्युनिस्ट: इसमें सर्वहारा वर्ग की भूमिका और कम्युनिस्ट विचारधारा के सिद्धांतों की विवेचना की गई है।
3. समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य: इसमें समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य की विवेचना की गई है।
4. विभिन्न विरोधी पार्टियों के सम्बन्ध में कम्युनिस्टों का रुख़: इसमें कम्युनिस्टों के विभिन्न विरोधी पार्टियों के प्रति रुख की विवेचना की गई है।
कम्युनिस्ट घोषणापत्र एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो कम्युनिस्ट विचारधारा के मूल सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है और समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य की विवेचना करता है।
1. बुर्जुआ और सर्वहारा:-
बुर्जुआ और सर्वहारा दो वर्ग हैं जिनका उल्लेख कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने अपने प्रसिद्ध दस्तावेज "कम्युनिस्ट घोषणापत्र" में किया है।
A. बुर्जुआ वर्ग:-
बुर्जुआ वर्ग वह वर्ग है जो उत्पादन के साधनों का स्वामित्व रखता है, जैसे कि कारखाने, जमीन, और पूंजी। यह वर्ग समाज का शासक वर्ग है और इसके सदस्य समाज के निर्णय लेने वाले पदों पर होते हैं।
B. सर्वहारा वर्ग:-
सर्वहारा वर्ग वह वर्ग है जो उत्पादन के साधनों का स्वामित्व नहीं रखता है और जो अपनी श्रम शक्ति को बेचकर जीवन यापन करता है। यह वर्ग समाज का शोषित वर्ग है और इसके सदस्य समाज के निर्णय लेने वाले पदों पर नहीं होते हैं।
* बुर्जुआ और सर्वहारा के बीच संघर्ष:-
मार्क्स और एंगेल्स के अनुसार, बुर्जुआ और सर्वहारा वर्गों के बीच एक निरंतर संघर्ष होता है। बुर्जुआ वर्ग सर्वहारा वर्ग का शोषण करता है और अपने स्वार्थ के लिए उनका उपयोग करता है। सर्वहारा वर्ग, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करता है और बुर्जुआ वर्ग के खिलाफ विद्रोह करता है। यह संघर्ष समाज में परिवर्तन का कारण बनता है और समाज को एक नए युग में ले जाता है।
2. सर्वहारा और कम्युनिस्ट:-
* सर्वहारा और कम्युनिस्ट मार्क्सवाद की दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ :-
मार्क्सवाद, जो कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित एक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दर्शन है, में सर्वहारा और कम्युनिस्ट दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं।
1. सर्वहारा:-
मार्क्सवाद में, सर्वहारा वर्ग उन लोगों का समूह है जिनके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व नहीं होता है और वे अपनी आजीविका के लिए अपनी श्रम शक्ति को पूंजीपतियों को बेचने के लिए मजबूर होते हैं। दूसरे शब्दों में, सर्वहारा वर्ग में मजदूर, कर्मचारी और अन्य श्रमिक शामिल होते हैं जो पूंजीपतियों के लिए काम करते हैं और उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मालिक नहीं होते हैं।
मार्क्स का मानना था कि पूंजीवादी समाज में सर्वहारा वर्ग का शोषण होता है क्योंकि उन्हें उनके श्रम के मूल्य का एक छोटा सा हिस्सा ही मिलता है, जबकि बाकी हिस्सा पूंजीपति अपने मुनाफे के रूप में रख लेते हैं। इस शोषण के कारण, सर्वहारा वर्ग में वर्ग चेतना जागृत होती है और वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए एकजुट होते हैं।
2. कम्युनिस्ट:-
मार्क्सवाद में, कम्युनिस्ट एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व नहीं होता है और वे समाज के सामूहिक स्वामित्व में होते हैं। कम्युनिस्ट समाज में, वर्ग भेद और शोषण समाप्त हो जाते हैं और सभी लोग समान रूप से संसाधनों और अवसरों का उपयोग करते हैं।
मार्क्स का मानना था कि सर्वहारा वर्ग की क्रांति के माध्यम से पूंजीवाद को समाप्त करके कम्युनिस्ट समाज की स्थापना की जा सकती है। कम्युनिस्ट समाज में, राज्य की भूमिका कम हो जाएगी और अंततः वह समाप्त हो जाएगा।
* सर्वहारा और कम्युनिस्ट के बीच संबंध:-
मार्क्सवाद के अनुसार, सर्वहारा वर्ग ही कम्युनिस्ट समाज की स्थापना का मुख्य वाहक है। सर्वहारा वर्ग पूंजीवादी शोषण से पीड़ित होने के कारण, उसमें क्रांति करने और एक वर्गहीन समाज की स्थापना करने की क्षमता होती है। कम्युनिस्ट घोषणापत्र में, मार्क्स और एंगेल्स ने नारा दिया था: "दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ!"
* निष्कर्ष:-
सर्वहारा और कम्युनिस्ट मार्क्सवाद की दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं जो पूंजीवादी समाज के विश्लेषण और उसके परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण हैं। सर्वहारा वर्ग पूंजीवादी शोषण का शिकार होता है और उसमें क्रांति करने की क्षमता होती है, जबकि कम्युनिस्ट एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें वर्ग भेद और शोषण समाप्त हो जाते हैं।
3. समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य:-
* समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य- एक सिंहावलोकन:-
समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए लिखे गए कार्यों का एक विशाल और विविध संग्रह है। यह साहित्य अक्सर पूंजीवाद की आलोचना करता है और एक अधिक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की स्थापना का समर्थन करता है।
* समाजवादी साहित्य:-
समाजवादी साहित्य में उन कार्यों को शामिल किया जाता है जो समाजवाद के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं। यह साहित्य अक्सर सामाजिक असमानता, गरीबी और अन्याय जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है। समाजवादी साहित्य के कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों में शामिल हैं:-
1. कम्युनिस्ट घोषणापत्र: कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा लिखा गया एक पर्चा है जो साम्यवाद के सिद्धांतों की व्याख्या करता है।
2.दास कैपिटल: कार्ल मार्क्स द्वारा लिखा गया एक बहु-खंडीय ग्रंथ है जो पूंजीवाद की आलोचना करता है।
3. द वेल्थ ऑफ नेशंस: एडम स्मिथ द्वारा लिखा गया एक ग्रंथ है जो मुक्त बाजार पूंजीवाद का समर्थन करता है।
4. यूटोपिया: थॉमस मोरे द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है जो एक आदर्श समाजवादी समाज का वर्णन करता है।
* कम्युनिस्ट साहित्य:-
कम्युनिस्ट साहित्य में उन कार्यों को शामिल किया जाता है जो साम्यवाद के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं। यह साहित्य अक्सर क्रांति और वर्ग संघर्ष जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है। कम्युनिस्ट साहित्य के कुछ प्रसिद्ध उदाहरणों में शामिल हैं:-
1. कम्युनिस्ट घोषणापत्र: (ऊपर वर्णित)
2. राज्य और क्रांति: व्लादिमीर लेनिन द्वारा लिखा गया एक ग्रंथ है जो सर्वहारा वर्ग केdictatorship का समर्थन करता है।
3. चीनी क्रांति: माओत्से तुंग द्वारा लिखा गया एक ग्रंथ है जो चीनी क्रांति के अनुभव का वर्णन करता है।
समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य के विषय
समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य में कई सामान्य विषयों का पता लगाया जाता है। इन विषयों में शामिल हैं:-
A. पूंजीवाद की आलोचना: समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य अक्सर पूंजीवाद की आलोचना करता है, यह तर्क देते हुए कि यह एक शोषणकारी और असमान व्यवस्था है।
B. वर्ग संघर्ष: समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य अक्सर वर्ग संघर्ष के विचार पर प्रकाश डालता है, यह तर्क देते हुए कि समाज को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है: पूंजीपति और सर्वहारा वर्ग।
C. क्रांति: कुछ समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य क्रांति का समर्थन करते हैं, यह तर्क देते हुए कि यह एक अधिक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का एकमात्र तरीका है।
D. समतावाद: समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य अक्सर समतावाद के विचार का समर्थन करते हैं, यह तर्क देते हुए कि सभी लोगों को समान अधिकार और अवसर होने चाहिए।
* समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य का प्रभाव:-
समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य का दुनिया भर के सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इस साहित्य ने कई क्रांतियों और सामाजिक सुधारों को प्रेरित किया है।
* निष्कर्ष:-
समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए लिखे गए कार्यों का एक महत्वपूर्ण निकाय है। यह साहित्य पूंजीवाद की आलोचना करता है और एक अधिक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की स्थापना का समर्थन करता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि "समाजवादी" और "कम्युनिस्ट" शब्दों के अर्थ समय के साथ बदल गए हैं। 20वीं शताब्दी में, इन शब्दों का उपयोग अक्सर सोवियत संघ और चीन जैसे देशों में स्थापित राजनीतिक व्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिए किया जाता था। हालांकि, आज, इन शब्दों का उपयोग विभिन्न प्रकार के सामाजिक और राजनीतिक विचारों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
4. विभिन्न विरोधी पार्टियों के सम्बन्ध में कम्युनिस्टों का रुख़:-
कम्युनिस्ट पार्टियों का अन्य विरोधी पार्टियों के प्रति रुख विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि राजनीतिक विचारधारा, ऐतिहासिक संबंध, और तात्कालिक राजनीतिक परिस्थितियाँ। सामान्य तौर पर, कम्युनिस्ट पार्टियाँ अन्य वामपंथी दलों के साथ सहयोग करने की अधिक संभावना रखती हैं, जबकि दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी दलों के साथ उनके संबंध अधिक तनावपूर्ण होते हैं।
* यहाँ कुछ सामान्य रुझान दिए गए हैं:-
1. वामपंथी दल: कम्युनिस्ट पार्टियाँ अक्सर अन्य वामपंथी दलों, जैसे कि समाजवादी और सामाजिक लोकतांत्रिक दलों के साथ गठबंधन बनाती हैं। इन दलों के बीच कई मुद्दों पर सहमति होती है, जैसे कि सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता, और श्रमिकों के अधिकार।
2. दक्षिणपंथी दल: कम्युनिस्ट पार्टियों और दक्षिणपंथी दलों के बीच संबंध आमतौर पर तनावपूर्ण होते हैं। दक्षिणपंथी दल अक्सर मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था, राष्ट्रवाद, और पारंपरिक मूल्यों का समर्थन करते हैं, जो कम्युनिस्ट विचारधारा के विपरीत हैं।
3. राष्ट्रवादी दल: कम्युनिस्ट पार्टियों का राष्ट्रवादी दलों के साथ संबंध भी जटिल हो सकता है। कुछ मामलों में, कम्युनिस्ट पार्टियाँ राष्ट्रवादी आंदोलनों में शामिल हुई हैं, खासकर जब वे साम्राज्यवाद या विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ हों। हालांकि, राष्ट्रवादी विचारधारा के कई पहलू, जैसे कि जातीयता और धार्मिकता पर बल, कम्युनिस्ट सिद्धांतों के साथ संघर्ष कर सकते हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सामान्य रुझान हैं, और विशिष्ट परिस्थितियाँ अलग-अलग हो सकती हैं। कुछ मामलों में, कम्युनिस्ट पार्टियों ने दक्षिणपंथी या राष्ट्रवादी दलों के साथ गठबंधन भी किया है, खासकर जब उन्हें किसी साझा दुश्मन का सामना करना पड़ा हो, 4. जैसे कि फासीवाद या तानाशाही।
विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ कम्युनिस्ट पार्टियों के संबंधों को समझने के लिए, उनकी विशिष्ट विचारधारा, इतिहास, और राजनीतिक परिस्थितियों का अध्ययन करना आवश्यक है।
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